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माँ

माँ की गोद मे रह कर बच्चा कितना सुखी व निश्चिन्त रहता है इसका जरा अनुमान लगाईये, मां के आश्रित बच्चे को न भूख प्यास की चिन्ता न कपड़े की न और किसी बात की। बच्चा कितना ही रोता हो मां की सुखद गोद मिल जाए तो उसके सारे कष्ट दूर हो कर विलक्षण सुख की अनुभूति होती है। मां की गोद में रह कर बच्चा हर प्रकार के अनिष्ट व चिन्ता से मुक्त रहता है। इसी प्रकार यदि हम अपने आप को भगवान रूपी माँ को सौंप कर निश्चिंत हो जाएं तो संसार के सारे दुःख दूर हो जाएं। भगवान तो संसार की समस्त माताओं के वात्सल्य से कहीं कोटि गुणा वात्सल्यमयी व समर्थवान मां हैं जो अपने जन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व योग क्षेम सम्भालने को सदा तत्पर हैं।

भगवान कहते हैं एक बार मेरे रूपर अपना भार सौंप तो सही मैं तेरा सारा प्रबन्ध करने को तैयार हूं। गीता में भगवान का प्रण है–

‘योग क्षेमं व्याम्हम्’ अप्राप्त की प्राप्ति करा देना और प्राप्त की रक्षा करना ये दोनों काम मैं करता हूं। यहाँ तक कि मेरे में मन लगाने से तु सम्पूर्ण विध्नों व दुुर्गुणों को मेरी कृपा से तर जाएगा।

मच्चिता सर्व दुर्गाणि मत्प्रसादा त्तरिष्यसि।

रामचरितमानस में भगवान कहते हैं कि-

करऊं सदा तिन की रखवारी।

जिमि बालक राखयि महतारी।।

‘‘मेरे भक्त का जहां कहीं अनिष्ट होता वहां मैं उसकी हर प्रकार से रक्षा करता हूं जैसे माँ बच्चे की सर्वदा रक्षा करती है।’’

ब्स हमें करना इतना मात्र है कि हमस ब प्रकार से भगवान के हो जाएं। हमारा दृढ़ विश्वास भरोसा आश्रय सब भगवान में होना चाहिए। हमारे मन के अनुकूल करे, प्रतिकूल करे जो कुछ भी करे सी में हमारा हित भरा है। जैसे बालक को माँ की चेष्टा को समझने की आवश्यकता नहीं है, न ही उसमें ताकत है। वह तो बस मां की गोद को ही अपना परम सुख मानता हैं ऐसे ही भगवान क्या करते हैं, कैसे करते है? इसे जानने का न तो हममें सामथ्र्य है और न ही आवश्यकता होनी चाहिए।

बस हम उनके हैं वे हमारे हैं वे ही हमारे माता-पिता, भई-बन्धु, धन-सम्पत्ति आदि सब कुछ हैं।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव।

त्वमेव बनधुश्च सखा त्वमेव।।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।

त्वमेव सर्वं मम देव देव।।

अपनी सब चिन्ता आशा सब माँ रूपी भगवान पर छोड़ के तो देखो तो सदा आनन्द और मौज हो जाएगी।

चिन्ता दीन दयाल को, मो मन सदा आनन्द।

जैसे माँ के पास जो कुछ होता है वह सब बच्चे के पालन पोषण के लिए ही होता है और माँ हर प्रकार से उसके लालन पालन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। माँ का सब सुख अपने बच्चे के लिए होता है।

ऐसे ही भगवान के पास जो शक्ति है, विलक्षणता है, प्रेम है, कृपा-करूणा, ऐश्वर्य आदि है वह सब उसके भक्त के लिए है। उनका अपना कुछ नहीं है जो उसके हो जाते हैं उन्हें वे सब कुछ लुटा देते हैं। एक बार उनके हो कर तो देखंे, उनके बच्चे बन कर देखें तो सही फिर किस बात की चिन्ता। यदि कोई चिन्ता या समस्या हो भी जाती है तो उसी भगवान रूपी माँ से कहो वह खुद सम्भालेगी।

भगवान माँ की तरह अपने भक्तों को पूरा लाड़ प्यार देते हैं तो कभी परीक्षा के लिए संसार का प्रलोभन ऐश्वर्य आदि देकर अपने से दूर ीाी करके देखते हैं कि मेरा जन मुझे कितना चाहता है। जैसे माँ अधिक काम में लगी हो तो बच्चे के आगे खिलौने या मिठाई देकर फुसला कर स्वयं काम में लग जाती है। कई बार तो बच्चा खिलौने व मिठाई में उलझ कर माँ को भूल जाता है तो माँ भी उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ देती है। किन्तु जो बच्चा खिलौने की परवाह न कर केवल माँ-माँ पुकारता है। उसके लिए ही रोता है, बिलबिलाता है। तब मां भी सभी काम छोड़ कर अपने बच्चे को गोदी ले लेती है, पुचकारती है, सहलाती है और अपने हृदय से लगा लेती है।

जे अनन्य भक्त माया के प्रलोभन में न फंस कर केवल उस सच्चिदानन्द परमात्मा राम में ही अपना मन चित्त जोड़े रहते हैं। केवल इसे ही चाहते है। तब भगवान भी ऐसे अपने लाडले प्यारे भक्तों को मिलने के लिए आतुर रहते हैं। हाँ भक्त भले ही भगवान को भूल जाए, मोह माया में फँसता चला जाए। विकारों की दल दल में, तब भी प्रभु अपने भक्त की रखा करते हैं। भले ही इसका रूप कैसा भी हो ीाक्त के मन को भाए या ना भाए। किन्तु जैसे बच्चे को कोई विषाक्त फोड़ा हो जाए और डाक्टर उस बच्चे की रक्षा के लिए उसे आप्रेशन की सलाह दे दे तो मां उसके हित के लिए कठिन हृदय करके आप्रेशन करवा ही लेती है भले ही बच्चा कितना रोए चिल्लाए।

जिमि शिशु व्रण तन होई गुसाईं।

मातु चिराव कठिन की नाई।

यद्यपि प्रथम दुख पावई, रोवे बाल अघीर।

व्याधि नाश हित जननी, गनइ न सो शिशु पीर।

किन्तु बच्चे के रोग नाश के लिए माँ उसके हित के लिए ही ऐसा करती है। ऐसे ही भगवान अपने प्यारे जन को बरबस विषय भोगों से निकाल लेने के लिए जबकि उसके न चाहते हुए उसके हित के लिए अनचाहे ढँग से उसको अपनी ओर बरबस खीँच लेते हैं। भक्त रूपी बेटे का परम हित छिपा (जिसमें) होता है। भगवान रूपी माँ वही करती है भले ही उसे अच्छा लगे या बुरा।

अतः उस परम हितैषी परम सुहृद माँ को कैसे भी पुकारो पर सदा उसके ही बन कर रहो। अबोध शिशु की भांति बस मौज से नाम सिमरण करते चलो। वह जैसे रखे कुछ भी करे सब उस पर छोड़कर चिन्ता त्याग केवल चिन्तन हो बस। आगे माँ जाने माँ का काम जाने। हम तो मस्ती मे माँ की गोद में पड़े हों, निश्चिंत हो कर, निर्भय होकर, निशंक हो कर। उसका नाम मीठा लगे, प्यारा लगे। माँ की भांति भगवान मीठे लगें, प्यारे लगें। बस फिर आनन्द ही आनन्द है।