headerImg
amritvani
प्रार्थना का स्वरूप

प्रार्थना के समय प्रार्थी को अपनी समस्त चंचल चित्तवृतियों को शान्त करके परमात्मा में समाहित करने का प्रयास करें और ऐसा अनुभव करें कि मै उस अनन्त शक्तिमान परमात्मा के अति समीप उसकी चरण शरण में बैठा अपने हृदय की पीड़ा को सुना रहा हूं और वे शांत चित उसे सुन रहे हैं।

हे सर्वव्यापक! हे दिव्यगुण सम्पन्न सर्वान्तार्यामी! तुम अनन्त काल से अपने उपकारों की वर्षा हम पर किये जाते हो असंख्य कामनाएं प्रतिक्षण पूर्ण हो रही हैं। आप अपने वात्सल्य की धाराओं से हमारे अन्तःकरण को संचित करते हो हमें तृप्त व आनन्दित करते हो।

हे मेरे जीवन सार! स्ंासारिक पदार्थों से प्राप्त होने वाली तृप्ति व सुख आंशिक हैं, अस्थायी व नश्वर हैं। हे मेरे अन्तरमन के साक्षी। जब तक आप मेरे हृदय के सर्वस्व नहीं हो जाते तब तक पूर्णानन्द की प्राप्ति असम्भव है, जब आप मेरे अन्तर में प्रकट हो जाओगे तब मेरा मन मोर आनन्द घन को देख कर नाच उठेगा। अतः मेसे सर्वस्व! मुझे इस सम्पूर्ण जगत से अनासक्त होने की शक्ति दो मेरे मन को अपनी ओर आकर्षित कर लो।

हे आनन्द के अक्षय स्त्रोत! आपको पाने की मेरी उत्कण्ठा कैसे पूर्ण हो सकती है जबकि मेरी इन्द्रियां बहिर्मुखी हैं, चितवृत्तियां चंचल हैं, वासनाएं मन को विक्षुब्ध किए रखती हैं। अतः हे शान्ति के दिव्यधाम! मैं आपकी ओर चातक की भांति शान्ति प्राप्ति के लिए आपके कृपा स्वाती बुन्द की आशा लगाए बैठा हूं। मुझ पर सहस्त्र धाराओं से कृपा वृष्टि करो। मेरे चारों ओर शांिन्त की दिव्य धाराएं प्रवाहित होने दो, मेरे मानस व रोम-रोम में शान्ति समा जाने दो। ताकि मेरी जन्म-जन्म से अशान्त वृतियां उस दिव्य धारा में समा जाएं और मेरी प्यास बुझ कर शान्त चित सदा आपके चिन्तन में डूबा रहूं बस यही मेरी कामना है। यही प्रार्थना है।